पित्ताशय की पथरी का ऑपरेशन कैसे होता है? प्रकार और विधि

पित्ताशय की पथरी:

पित्ताशय एक छोटा पॉकेट जैसा नाशपाती के आकार का अंग है जो मानव शरीर के पेट में दाहिने ओर पाया जाता है। यह लिवर द्वारा निर्मित पित्त (पाचक रस) को स्टोर और रिलीज करता है।

जब पित्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है या पित्ताशय ठीक से साफ़ नहीं हो पाता तो कोलेस्ट्रॉल पित्ताशय के भीतर ही जमा होने लगता है। यह पत्थर की तरह कठोर हो जाता है, जिसे पित्त पथरी कहते हैं।

ज्यादातर लोगों को कोलेस्ट्रॉल वाली गॉलस्टोन होती है। बाइल जूस में बिलुरुबिन की मात्रा अधिक है तो बिलुरुबिन वाली पथरी हो सकती है।

पित्ताशय की पथरी का आकार चावल के एक दाने से लेकर एक गोल्फ की गेंद जितना हो सकता है। यह अपने आप दूर नहीं होती है। अगर यह दर्दनाक लक्षण उत्पन्न करती है तो सर्जरी की जा सकती है।

पित्ताशय में पथरी का ऑपरेशन कब किया जाता है?

पित्ताशय की पथरी का ऑपरेशन के पहले निम्न जांच किए जा सकते हैं:

  • एब्डोमिनल अल्ट्रासाउंड
  • इंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड
  • हीडा स्कैन (HIDA Scan)
  • कंप्यूटराइज़्ड टोमोग्राफी (CT)
  • ERCP – Endoscopic Retrograde Cholangiopancreatography (इस नैदानिक प्रक्रिया के साथ गॉलब्लैडर स्टोन को हटाया भी जा सकता है। इस प्रक्रिया में पित्ताशय को निकालने की जरूरत नहीं होती है। अगर कुछ स्टोन बच जाते हैं तो उन्हें निकालने के लिए अन्य सर्जिकल तरीकों का सहारा लेना पड़ता है)
  • MRCP – Magnetic Resonance Cholangiopancreatography
  • ब्लड टेस्ट

इन जांच प्रक्रियाओं के बाद अगर निम्न समस्याएँ नजर आती हैं तो डॉक्टर सर्जरी की सलाह दे सकते हैं:

  • कोलेसिस्टिटिस
  • कोलैंगाइटिस
  • पैन्क्रियाटाइटिस

अगर पित्ताशय की पथरी कोई लक्षण उत्पन्न नहीं कर रही है तो सर्जरी की जरूरत नहीं होती है। यदि पथरी बाइल डक्ट के मार्ग में अटक जाती है तो रोगी को घंटो असहनीय दर्द होता है। इसे गॉलब्लैडर अटैक कहते हैं। इस स्थिति में तुरंत सर्जरी की आवश्यकता होती है।

पित्ताशय की पथरी का ऑपरेशन

पित्ताशय की पथरी के ऑपरेशन में पूरे पित्ताशय को ही हटा दिया जाता है। इसे कोलेसिस्टेक्टोमी कहते हैं। कोलेसिस्टेक्टोमी के दो मुख्य तरीके हैं:

  • ओपन कोलेसिस्टेक्टोमी
  • लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टोमी

ऑपरेशन के पहले

पित्ताशय की पथरी का ऑपरेशन के पहले आपका डॉक्टर निम्न निर्देशों का पालन करने के लिए कह सकता है:

  • सर्जरी के एक रात पहले आपको खाने से मना किया जा सकता है। सर्जरी से लगभग 4 घंटे पहले से कुछ भी खाने या पीने की इजाजत नहीं होती है।
  • अगर आप पहले से किसी दवा या सप्लीमेंट का सेवन कर रहे हैं तो इसकी जानकारी डॉक्टर को दें। कुछ विशेष दवा या सप्लीमेंट्स को लेने से रोका जा सकता है क्योंकि उनके सेवन से सर्जरी के दौरान और बाद में ब्लीडिंग का जोखिम बढ़ जाता है।
  • ऑपरेशन के पहले किसी भी ब्लड थिनर का सेवन न करें।
  • कोलेसिस्टेक्टोमी के बाद अधिकतर मरीज एक ही दिन में घर जा पाते हैं, लेकिन जटिलताओं की वजह से एक-दो दिन हॉस्पिटल में रुकना पड़ सकता है। इसलिए इसके लिए पहले से तैयार रहें।
  • ऑपरेशन के बाद रोगी को घर जाने के लिए एक साथी की जरूरत पड़ती है।

ऑपरेशन के दौरान

रोगी को जनरल एनेस्थीसिया दिया जाता है, ताकि प्रक्रिया के दौरान दर्द महसूस न हो। एनेस्थीसिया का इंजेक्शन रोगी के हाँथ की नस में दिया जा सकता है।

एनेस्थीसिया का प्रभाव शुरू होने के बाद डॉक्टर रोगी के गले में एक ट्यूब डालते हैं। इससे रोगी को सांस लेने में मदद मिलती है। इसके बाद लेप्रोस्कोपिक या ओपन प्रक्रिया का उपयोग कर कोलेसिस्टेक्टोमी को अंजाम दिया जाता है।

पारंपरिक या ओपन कोलेसिस्टेक्टोमी

पारंपरिक कोलेसिस्टेक्टोमी को सामान्य एनेस्थीसिया के प्रभाव में, एक ऑपरेटिंग कमरे में किया जाता है। सर्जरी के लिए स्टैण्डर्ड लेप्रोटॉमी उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।

ऑपरेशन के दौरान इंट्राऑपरेटिव कोलेजनोग्राम (एक विशेष प्रकार का एक्स-रे जो पित्त नलिकाओं का लाइव वीडियो दिखाता है) की आवश्यकता पड़ सकती है इसलिए कोलेजनोग्राम कैथेटर उपलब्ध होना चाहिए।

बाइल डक्ट एक्स्प्लोरेशन (CBD Exploration) के लिए कोलोनोस्कोप की जरूरत पड़ सकती है। पथरी को निकालने के लिए बाइल डक्ट बास्केट, ग्रैस्पर्स (graspers) और फोगार्टी कैथेटर्स (Fogarty catheters) जैसे उपकरण उपलब्ध होने चाहिए।

जब रोगी उचित रूप से बेहोश हो जाता है तो दाहिने रिब के नीचे या एक अपर मिडलाइन चीरा लगाया जाता है। चीरा की लंबाई 6 इंच (15 cm) होती है।

सर्जिकल पैक्स और रिट्रैक्टर (एक उपकरण जो घाव खोलने या चीरा को खुला रखने के लिए उपयोग में लाया जाता है) की मदद से सर्जन प्रभावित क्षेत्र के एनाटॉमी को देखता है।

गॉलब्लैडर, सिस्टोहेपेटिक ट्रायंगल (cystohepatic triangle) और पित्त नलिकाओं का बेहतर दृश्य प्राप्त करना आवश्यक है। रिट्रैक्टर के उपयोग से लिवर को क्षति न पहुंचे, इसके लिए सर्जन बड़ी सावधानी बरतता है।

अब सर्जन अपनी सुविधा के लिए क्लैंप की मदद से पित्ताशय की थैली को पकड़ता है और हेरफेर करता है। पित्ताशय को टॉप-डाउन हटाना है या सिस्टोहेपेटिक ट्रायंगल से, इसका फैसला लिया जाता है।

अब सिस्टिक डक्ट (एक ट्यूब जो गॉल ब्लैडर से बाइल इकठ्ठा करती है) के बीच हेमोक्लिप लगाया जाता है और ऐसा ही सिस्टिक आर्टरी के साथ किया जाता है।

अब पित्ताशय को इलेक्ट्रोकॉटरी (पित्त की थैली को हटाने की एक विधि) या हार्मोनिक स्केलपल की मदद से लिवर बेड से हटाया जाता है। पित्ताशय निकालने के बाद टांका की मदद से चीरा बंद कर दिया जाता है।

इस पूरी प्रक्रिया में 1-2 घंटा का समाया लगता है। प्रक्रिया सफल हो जाने के बाद रोगी को रिकवरी रूम में ले जाया जाता है। 3 से 5 दिन तक हॉस्पिटल में रुकने की जरूरत होती है।

लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टोमी

यह पित्ताशय की पथरी हटाने के लिए एक न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया है। सबसे पहले 15 mmHg इंट्राबॉमिनल प्रेशर से कार्बन डाइऑक्साइड पेट में भरी जाती है। इसके लिए इंसफ्लेशन नीडल (insufflation needle) का उपयोग किया जाता है।

कार्बन डाइऑक्साइड गैस पेट में भरने से यह फूल जाता है जिससे गॉलब्लैडर और आस-पास के अन्य अंगो को देखने में सरलता होती है।

अब रोगी के पेट में 4 छोटे चीरे लगाए जाते हैं। एक चीरे की मदद से लेप्रोस्कोप (एक पतला उपकरण जिसके अंत में कैमरा लगा होता है, यह पित्ताशय के दृश्य को कंप्यूटर में दिखाता है) डाला जाता है। बचे हुए तीन चीरों से अन्य सर्जिकल उपकरण डाले जाते हैं।

सिस्टिक डक्ट और सिस्टिक आर्टरी को काटकर अलग कर दिया जाता है। अब इलेक्ट्रोकॉटरी या हार्मोनिक स्केलपेल की मदद से पित्ताशय को लिवर बेड से अलग कर दिया जाता है।

पित्ताशय हटाने के बाद उपकरण निकाल लिए जाते हैं और चीरा को घुलनशील टांकों से बंद कर दिया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में 1-2 घंटा का समय लगता है।

ऑपरेशन के बाद

पित्ताशय की पथरी का ऑपरेशन के बाद रोगी को रिकवरी रूम में ले जाया जाता है। प्रक्रिया के आधार पर रिकवरी अलग-अलग हो सकती है।

लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टोमी के बाद रोगी उसी दिन घर जा सकता है। हालांकि कई बार एक रात के लिए हॉस्पिटल में रुकने की आवश्यकता पड़ सकती है।

ओपन कोलेसिस्टेक्टोमी के बाद रोगी को लगभग 5 दिन हॉस्पिटल में बिताना होता है। आमतौर पर जब रोगी खाने-पीने में सक्षम हो जाता है और उसका दर्द कम हो जाता है तो छुट्टी दे दी जाती है।

अस्पताल से डिस्चार्ज के दौरान मरीज को कुछ दिशा-निर्देश दिए जाते हैं जिनका पालन करना होता है।

ओपन और लेप्रोस्कोपिक ऑपरेशन में बेहतर कौन?

दोनों ही तरीकों की मदद से पित्ताशय की पथरी का सफल ऑपरेशन किया जा सकता है। सन 1991 के पहले कोलेसिस्टेक्टोमी के लिए ओपन सर्जरी को ही स्टैण्डर्ड प्रक्रिया माना जाता था।

लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टोमी की खोज के बाद आंकड़ो में तेजी से बदलाव हुआ। अब लगभग 92% कोलेसिस्टेक्टोमी लेप्रोस्कोपिक तरीके से की जाती है।

एक अध्ययन के अनुसार लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया में ओपन प्रक्रिया की तुलना में मृत्यु का जोखिम कम होता है। ओपन सर्जरी के बाद ह्रदय रोग, श्वसन रोग और अन्य रोगों की संख्या का जोखिम, लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के मुकाबले अधिक होता है।

लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टोमी में ब्लड लॉस और इन्फेक्शन का खतरा कम होता है। पूरी तरह से रिकवर होने में एक सप्ताह का समय लग सकता है।

ओपन कोलेसिस्टेक्टोमी के बाद पूरी तरह रिकवर होने में 6 सप्ताह का समय लग सकता है। दर्द और अन्य जटिलताओं का खतरा अधिक रहता है।

पित्ताशय की पथरी का ऑपरेशन के लिए लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया एक बेहतर विकल्प हो सकता है। हालांकि, आपके साथ कौन सी प्रक्रिया की जानी चाहिए यह अपने सर्जन पर छोड़ दें। उचित निदान के बाद एक विशेष सर्जिकल प्रक्रिया का चयन होता है।

पित्ताशय की पथरी का ऑपरेशन की जटिलताएं

पित्ताशय की थैली को हटाना एक सुरक्षित प्रक्रिया है लेकिन कई बार कुछ जटिलताएं नजर आ सकती हैं, जैसे:

  • संक्रमण
  • ब्लीडिंग
  • पित्त रिसाव
  • पित्त नली में चोट
  • आंत, आंत्र और रक्त वाहिकाओं को चोट
  • डीप वेन थ्रोम्बोसिस (Deep Vein Thrombosis)
  • सामान्य संवेदनाहारी से जोखिम
  • पेट दर्द
  • खट्टी डकार
  • दस्त

अधिकतर मामलों में पोस्ट-कोलेसिस्टेक्टोमी लक्षण जटिल नहीं होते हैं और थोड़े समय के लिए ही होते हैं। उपर्युक्त लक्षण अगर लगातार बने हुए हैं तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें।डॉक्टर आपको पेनकिलर और संक्रमण से बचने के लिए एंटी-बायोटिक दवाइयां दे सकता है। जटिलताओं से बचने के लिए कुछ दिनों तक वजन नहीं उठाना चाहिए।पित्ताशय की पथरी का ऑपरेशन के बाद क्या करना चाहिए और क्या नहीं, अपने डॉक्टर से यह सवाल करें।

निष्कर्ष

कोलेसिस्टेक्टोमी पित्ताशय की पथरी का ऑपरेशन है जो आपके दर्द को हमेशा के लिए दूर कर देता है। नॉन-सर्जिकल उपचार जैसे शॉक वेव और ERCP बड़े आकार के स्टोन के लिए प्रभावी नहीं हैं। नॉन-सर्जिकल ट्रीटमेंट का सबसे बड़ा नुकसान है कि कुछ ही समय बाद रोगी को दोबारा पथरी के दर्द से जूझना पड़ सकता है।

दवाइयों के द्वारा पथरी घोलने में सालों लग जाते हैं। यह तरीका सफल होगा या नहीं इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती है। दवा का सेवन रोकने पर पुनः पथरी बन सकती है। लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टोमी आपको बेहतर परिणाम दे सकता है। इसकी जटिलताएं बहुत कम हैं और रिकवरी बहुत तेज होती है। यह पित्ताशय की पथरी का स्थाई इलाज प्रदान करता है।

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